Tekken 3: Embark on the Free PC Combat Adventure

Tekken 3 entices with a complimentary PC gaming journey. Delve into legendary clashes, navigate varied modes, and experience the tale that sculpted fighting game lore!

Tekken 3

Categories

Posts

टेलीविजन या अंधविश्वास का विजन

निर्माता गुलखान द्वारा बनाया गया सीरियल “ये जादू है जिन्न का” धडल्ले से टीवी स्क्रीन पर चल रहा है।  नकारात्मक किरदारों से लेकर आलोकिक शक्तियों, जिन्न, डायन, भूत-प्रेत से भरपूर ये सीरियल टीआरपी के लिहाज से तीसरे नंबर पर चल रहा है।  दूसरा ऐसा ही सीरियल है “कुंडली भाग्य” कहने को तो इसमें प्रज्ञा और बुलबुल की लंबे समय से खोई हुई छोटी बहनों, प्रीता और सृष्टि की कहानी है लेकिन अंधविश्वास के तडके से यह सीरियल दर्शकों के लिए जायकेदार हो जाता है।  ऐसे न जाने कितने सीरियल आज टीवी पर परोसे जा रहे है जो समाज को दिन प्रतिदिन अंधविश्वास की ओर ले जा रहे है।

मनोरंजन के लिए परोसे जा रहे ये सीरियल बड़ी आसानी से लोगों की दिनचर्या में शामिल हो रहे हैं।  सिर्फ शामिल ही नहीं हो रहे है बल्कि बच्चों से लेकर बड़ों तक के मन में अपनी मजबूत पकड़ बना चुके है।  साल  2013 में राजस्थान के गंगापुर सिटी की घटना से सभी परिचित होंगे।  जब एक परिवार अपने घर में टीवी पर अगर कुछ देखता था तो सिर्फ एक देवता शिव पर केन्द्रित धारावाहिक देवों के देव महादेव देखता था।  एक  दिन परिवार ने इसी धारावाहिक को देखा और फिर शिव के आने का इंतजार करते हुए पूजा में लग गया।  शाम तक शिव का इंतजार किया जब कोई नहीं नहीं आया तो समूचे परिवार ने खुद शिव से मिलने की ठानी और स्वर्ग जाने की बातचीत करते हुए बहुत सहज भाव से सबने जहर खा लिया. आठ में से तीन तो किसी तरह पड़ोसियों के आ जाने बचाए जा सके लेकिन पांच की मौत हो गयी थी।  यह घटना अपने आप में इतना बताने के लिए काफी है समाज में पहले से पसरे अंधविश्वासों के अलावा कोई टीवी धारावाहिक किस कदर लोगों के सोचने समझने की क्षमता को खत्म कर सकता है।  जुलाई, 2018 को बुराड़ी के संत नगर में सामूहिक आत्महत्या की घटना न केवल दिल्ली, बल्कि पूरे देश में खासी सुर्खियों में रही थी धार्मिक मान्यताओं को लेकर एक हँसते खेलते एक ही परिवार के 11 लोगों ने फांसी लगाकर आत्महत्या की थी।

इतना ही नहीं मेरठ में 25 साल की एक युवती आरती के पति की एक दुर्घटना में मौत हो गयी थी। कुछ समय पहले उसकी पांच साल की भतीजी ने कहा बुआ आप सफेद साड़ी क्यों नहीं पहनती है। आप तो विधवा हो यह बात सुनकर आरती अवाक रह गयी थी।  लेकिन उसकी भतीजी को लगा कि यह बेवकूफ है जो उसकी बात नहीं समझ रही है।  इसके बाद भतीजी ने अपनी बुआ को कलर्स टीवी पर प्रसारित होने वाले धारावाहिक गंगा की मिसाल देते हुए समझाया था कि गंगा मेरे जितनी छोटी बच्ची है और उसका पति मर गया इसलिए वह सफेद साड़ी पहनती है।  एक तरफ जहाँ आरती के घरवाले उसे सामान्य जीवन की और मोड़ने की कोशिश में जुटे थे तभी उसके सामने छोटी सी बच्ची का खोफनाक सवाल खड़ा हो उठता है।

जहाँ आज टीवी धारावाहिक ये जादू है जिन्न का, डर सबको लगता है, भूत प्रेत नाग नागिन के साथ दर्शकों को मनोरंजन की खुराक पेश कर रहे है।  वही गंगा जैसे धरावाहिक विधवा जीवन का कड़ाई से पालन करने वाली एक विधवा को नायिका बना देते है। एक या दो सीरियल की बात नहीं यदि ध्यानपूर्वक देखा जाये तो इन जड़ों को मजबूती सारे सीरियल दे रहे हैं।  कहीं अघोरी, तो किसी पर नजर, दिव्य-दृष्टी कोई डायन तो कोई कुंडली भाग्य जैसे कई सीरियल शामिल हैं।  इनमें डायन से लेकर पिशाच तक को दिखाया जाता है।  यहां काल्पनिक कहानियों को इस तरह से आकर्षक बनाकर दिखाया जाता है कि बच्चें और कई बार तो महिलाएं भी उसे सच मान लेते हैं।

यानि आज धारावाहिक पर वही चीजें दिखाई जा रही जिसके खिलाफ लड़ते हुए स्वामी दयानन्द सरस्वती जी ने न केवल अंधविश्वासों और विधवा विवाह जैसी अनेकों कुप्रथाओं के खिलाफ एक लम्बी लड़ाई लड़ी बल्कि अपने प्राण तक समाज के लिए न्योछावर कर दिए।  जिस बात को स्वामी दयानन्द सरस्वती जी और विज्ञान ने साबित कर दिया कि चुड़ैल या डायन भूत, प्रेत, जैसी कोई चीज होती ही नहीं है।  लेकिन टीवी ऑन करते ही विभिन्न चैनलों पर ये दिख जाते हैं। आलोकिक और काल्पनिक घटनाओं पर आधारित सीरियलों  का प्रसारण इतनी बड़ी संख्या में हो रहा है, इनसे न केवल बच्चों के मन और मस्तिष्क पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है, बल्कि अंधविश्वास के कारण होने वाली घटनाएं भी दिनों दिन बढ़ रही है।  विज्ञान और टेक्नोलोजी ने जो चीजें नकार दी आज उसी विज्ञान और टेक्नोलोजी के सहारे उसे फिर उसी अँधेरे में ले जाने की कवायद खुलेआम चल रही है।

आखिर कौन इसका लाभ ले रहा है किसको इसका फायदा है, कौन है ये लोग जो पुन: समाज को रसातल में ले जा रहे है उन्नत सोच के बजाय यह पाखंड बेच रहा है? ऐसे सवालों के बजाय अखबारों से इन सीरियलों का विज्ञापन लगातार जारी है।  समाज में जागरूकता का आभाव है या ये आभाव पैदा किया जा रहा है क्योंकि जिस तरीके से यह सीरियल बड़ी आसानी से लोगों की दिनचर्या में शामिल हो रहे हैं, उसे देखकर लगता है कि बड़ी विशाल अंधविश्वास की दुनिया का निर्माण किया जा रहा है।  हालाँकि सरकार की ओर से इस तरह के चीजों को रोकने और समाज में अंधविश्वास फैलने से रोकने के लिए सेंसर बोर्ड का गठन किया है, लेकिन अफसोस वे इसे रोक नहीं पा रहे हैं।  ऐसे में वे ही कही न कही इस अंधविश्वास को फैलाने में अपना योगदान दे रहे हैं।

जबकि आज ऐसे सीरियलों की जरूरत है जो रूढ़ीवादी भ्रांतियों को तोड़े और लोगों के सामने किसी भी चीज का वैज्ञानिक विश्लेषण पेश करें।  लेकिन अफसोस की अंधविश्वास केवल धार्मिक चैनल ही नहीं बल्कि सुबह की न्यूज से लेकर प्रगतिशील मुद्दों पर बहस कराने वाले चैनल भी तन्त्र मन्त्र के नाम पर लोगों के दिमाग के दरवाजे बंद करने पर जुटे है।  ये लोग टीवी के जरिये एक ऐसा अँधा युग ला रहे है जहाँ तर्क और विज्ञान के सभी दरवाजे बंद है।  क्या सरकार और मीडिया इन चीजों से अनजान है जबकि ऐसे सीरियल लोगों की बुद्धि को समाप्त कर रहे है । जिसका लाभ गली मोहल्लों में बैठे बंगाली बाबा से झाड़ फूंक वाले उठा रहे है और देश के कई राज्यों में डायन के नाम पर हत्याओं जैसे अपराध का ग्राफ सर उठाये खड़ा हैं।

 विनय आर्य (महामंत्री) आर्य समाज 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *