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वैदिक सिद्धांत आखिर है क्या ?

वैदिक सिद्धांत आखिर है क्या ?

इस वाक्य को सुनते ही लोग सोचने लगते हैं कि यह कोई नूतन परंपरा होगी| यह मात्र अनजानो की ही बात होगी क्युकी जहाँ बात वैदिक सिद्धांत की हो तो वो नई पुरानी में उसे शामिल करना सरासर गलत ही है| क्युकी आदि सृष्टि से सृजनकर्ता ने अपनी संतानों को यह नियम बनाकर दिया है जिसका नाम वैदिक है | वेद का अर्थ ज्ञान है| यह ज्ञान सर्वकालिक, सार्वभौमिक और सार्वदेशिक है| परमात्मा का संविधान अगर किसी ख़ास मुल्क वालों को संबोधन करे तो परमात्मा पर पक्षपात का दोष लगेगा | यह दोष जितने भी मजहबी किताब है सब पर लगा | कारण मजहब का जन्म पहले है और किताब बाद मे है | किताब को मज़हब के जन्म देने वालों द्वारा बनाया गया है, मानव मात्र के लिए-नहीं | यही कारण है की जितने भी मज़हबी किताब है वह किसी मज़हब वालों के लिए उपदेश है, वर्ग विशेष के लिये आदेश है, संप्रदाय के लिये सन्देश है सम्पूर्ण मानवता के लिए नहीं | परन्तु वेद का उपदेश पूरी मानव जाती के लिये है | ठीक इसी प्रकार वैदिक सिद्धाँत भी सम्पूर्ण मानवता के लिए है | इसके अतिरिक्त जितने भी वाद हैं जैसे समाजवाद, पूंजीवाद, साम्यवाद, संप्रदायवाद व अनेक ईश्वरवाद यह सभी मानव कृत होने से सबके लिए होना अथवा बराबर होना संभव नहीं | वैदिक संस्कृती के जानने और मानने वालों का यह दृढ़ विश्वास है की सृष्टी के आदि से परमात्मा ने जो ज्ञान सम्पूर्ण मानव जाती को ऋषि –मुनि के द्वारा दिया है या निर्धारित किया है वही मार्ग या लक्ष्य संसार का कल्याण कर सकता है | शर्त यह है कि मानव मात्र को विश्व कल्याण के लिये उसी मार्ग पर चलना होगा और उसी ध्येय को अपना लक्षय बनाना होगा | इसी सिद्धांत को अपनाने के कारण भारत कभी विश्व गुरु कहलाया था और संसार का मार्गदर्शन किया था| यहाँ भारत इसलिये लिखा है कि मनुस्य की उतपत्ती भारत से ही हुई है | इतिहास गवाह है कि जितने भी ऋषि मुनि हुए सभी ने भारत में ही जन्म लिया | वैसे कहने के लिये कुरान ने भी कहा – “वमा अरसल ना इल्ला बी लेसाने काव मेही ले यो बाई याना लहुम” याने हमने हर कौम के जुबान में नबी भेजा है | अल्लाह ने कह तो दिया परन्तु भारत में जितने भी ऋषि मुनि से लेकर मर्यादा पुरुषोत्तम राम हो या फिर योगेश्वर कृष्ण हो इस्लाम ने किसी को भी नबी या पैगम्बर नहीं माना | तो अल्लाह का कहना सही कैसे माना जाए कि अल्लाह ने भारत वालों कि जुबान में भी किसी नबी को भेजा हो? यह मान्यता हमारी है भी नहीं कि परमात्मा को पैगम्बर भेजना पड़ता है| वेद का परमात्मा सब ज़गह है, उसे अपना पैगाम भेजने के लिये किसी बिचौलिये को भेजना नहीं पड़ता है| क्युकी वह जहा नहीं होगा वहां किसी को भेजने की ज़रूरत होगी | हमें भली भांति इन् सभी बातों को जानने के लिये वैदिक सिद्धान्त के मूल तत्व को जानना पड़ेगा | इस भारत ने अपने यौवन काल में यही वैदिक संस्कृती के बल पर संसार का मार्गदर्शक बन सोने की चिड़िया कहलाया | वह वैदिक मान्यता चरित्र के आधार पर बनी थी पर आज तो चरित्र हरण का बोलबाला है और सरकार भी

जुटी है इसको व्यापक प्रचार करने में | आजकल सुनने में आता है की अमुक देश में या शहरों में १००-१०० मंजिला मकान है | इसी प्रकार पहले सुनने में आता था अमुक ऋषि दंडारंणयक में रहते है या फलाना ऋषि बृहदअरण्यक में निवास करते है जिसमे वो अपनी कुटिया में बैठकर गहन साधना और आध्यात्मिक तत्व का विवेचन किया करते थे | तपोवन की वह संस्कृती आज की सभ्यता से मौलिक रूप में भिन्न थी | हम अपने पूर्वजों की उस तप को न तो जानते हैं ओर न ही उसका पालन करते हैं | सभ्यता और संस्कृती में आधारभूत भेद यह है कि सभ्यता शरीर है और संस्कृती आत्मा | सभ्यता बाहरी चीज़ है, संस्कृती भीतरी | सभ्यता भौतिक विकास का नाम है और संस्कृती अध्यात्मिक विकास | जैसा रेल, मोटर, टेलीविजन, हवाईज़हाज, कंप्यूटर , रॉकेट आदि सब सभ्यता का रूप है | पर सच्चाई, सदाचार, संतोष, संयम, इश्वारास्था, उपासना और परोपकार यह सभी संस्कृती का रूप है | इस कसौटी-को समस्त वादों में देखें जो ऊपर बताये गये जैसे समाजवाद, पूंजीवाद, साम्यवाद, सम्प्रदायवाद, विकासवाद यानि इस धरातल पर जितने भी वाद हैं, सिर्फ वैदिक वाद को छोड़ यह खूबी किसी के पास नहीं है || वर्तमान भारत वर्ष की राजनीति को देखने से पता लगता है कि लूट, खसोट और अनैतिकता को ही लोगों ने अपना कर्त्तव्य मान लिया है | वैदिक मान्यता से दूर होने का ही नतीजा है जो हमारे सामने आज घटित हो रहा है | चारो तरफ लूट, मार, झूट, छल, कपट, घोटाला आदि की राजनीति चल रही है | धर्म के नाम से खूनी खेल खेला जा रहा है | मानवों से मैत्रीय भाव समाप्त होता जा रहा है | आज मानव एक दूसरे को डसने में लगा है | जो वृर्त्ति पशुओं में है, ठीक वही काटने और भौंकने की आदत मनवो में आ गयी है | वैदिक सिद्धांत से ज़ितनी दूर हम होते गये उतनी ही मानवता से परे होते गये | आज अगर कमी है तो इसी वैदिक परम्परा की कमी है | जो हमारा मूल कर्तव्य हमारा था हमने उसे त्याग दिया | मनुष्य मात्र को चाहिये कि जब भी वो कोई काम करे तो धर्मानुसार सत्य और असत्य को विचार करके करे | यही धर्मानुसार कर्म वैदिक सिद्धांत है | इस प्रकार मनुष्य से कभी भी कोई गलत काम न हो इसी को वैदिक परम्परा कहते हैं | यहाँ किसी विशेष देशवालों के लिये ही उपदेश नहीं है और न हीं किसी ख़ास वर्ग के लिये है, किन्तु यह ज्ञान समस्त मानवो के लिए है | इसी नियम को इंसान कहलाने वाले अगर मान लें तो विश्व में शांति का होना संभव है | मनुष्य के लिये एक ही इष्ट देव, एक ही धर्म और एक ही धर्म ग्रन्थ – इस वैदिक विचारधारा को अगर जन-जन तक पंहुचा दिया जाए तो मानव समाज में शांति का आना संभव है, जो सत्य सनातन वैदिक धर्म की मान्यता है | अगर हमारी संताने भी हमारे पद चिन्हों पर चलने लग जाये तो हम भावी पीढी के लिए पेड़ बन कर शीतल छाया देने में कामयाब होंगे | हम जाते वक़्त कोई ऐसा बीज बों कर जाएं की दूसरा पेड़ तैयार होकर सभी प्राणियों को सुख पहुचाने के काम आयें | हमारे न रहने पर भी लोग हमें याद करते रहे और इस परम्परा का निर्वाह करते हुए वैदिक संस्कृति का अनुपालन करते रहे | वैदिक संस्कृती की मान्यतानुसार मानवों को दुनिया मे रहकर ऐसा कर्म करना चाहिये कि जिससे वह

देवत्व को प्राप्त करे | क्युकी मनुष्य ही देवता बनते हैं | उसी के कर्म उसे देवता या राक्षस बनाते है | यह है वैदिक सिद्धांत और संस्कृति जिसे अपनाकर श्री रामचन्द्र मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाये | आज ही हम अपने कर्मानुसार धरती पर मानव होने का सौभाग्य प्राप्त करें और वैदिक सिद्धांतों द्वारा अपना-अपना कर्त्तव्य जाने और समझे | आज ही संकल्प लें इस मानव धर्म को निभाने का और इश्वरकृत वैदिक धर्मी बनने का | सत्य को जान कर मानव जीवन को सफल बनाएं और “कृणवन्तो विश्वंम आर्यम” का उद्देश्य पूरा करें |

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