भारत को आजाद हुए चाहे 68 साल बीतचुके हैं लेकिन अभी भी यह देश जातिवादजैसी सामाजिक बुराइओं से जूझ रहा है। पंजाब के शहर फगवाड़ा में तोइसजातिवाद का जहर मरने के बाद भी लोगों का पीछा नहीं छोड़ता। फगवाड़ा केक्षेत्रहदिआबाद में अलग अलग जातिओ के लिए अलग अलग शमशान घाट बनाये गए हैं।इस शमशान घाटो के सेवादारो का कहना है कि बरसों से इस इलाके में यही प्रथाचली आ रही है। एक साल पहले हरियाणा के हिसार जनपद के भगाना गाँव में जिस तरह से वहाँ दलित समाज को किसी भी स्तर पर आशानुरूप सामाजिक न्याय नहींमिल पा रहा था जिस कारण पहले उन्होंने घर छोड़ने के बाद अब अपना धर्म छोड़नेतक का सफर भी तय करना पड़ा दिल्ली में जंतर मंतर पर धरने में हीलगभग सौ दलित परिवारों ने हिन्दू धर्म छोड़ते हुए पूरे रीति रिवाज से इस्लामधर्म को अपना लिया है जिसके बाद समाज की उस क्रूर मानसिकता और हज़ारोंवर्षों से भारतीय समाज में व्याप्त जाति व्यवस्था का यह विद्रूप चहेरा भीसामने आया है इस सबके बीच सबसे चिंता की बात यह है कि देश के किसी भीराजनैतिक दल की ओर से इन दलितों और प्रताड़ित किये गए वंचितों के प्रति कोई चिंताया संवेदनशीलता दिखाई नहीं दी यह कोई अकेली घटना नही है बल्कि सामाजिक स्तर पर रोजाना ऐसी घटना हो रही है| जिसमें ब्राह्मण वाद कहीं सीधे तौर पर तो कहीं उसके द्वारा खड़ी की गयी सामाजिक जाति व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह लगता दिखाई देता है|
यही नहीं यदि हम सरहद पार करे तो वहाँ का भी हाल यही है| जगजीत सिंह पाकिस्तान के उन दलित हिंदुओं में से हैं जो भेदभाव से तंग आकर अपना धर्म बदलने पर मजबूर हुए हैं। जगजीत अपने परिवार के साथ सिंध प्रांत के रेगिस्तानी जिले थरपारकर के मुख्यालय मट्ठी में रहते हैं। 2005 तक जगजीत का नाम हसानंद था, लेकिन फिर उन्होंने अपनी पत्नी और बच्चों के साथ अपना धर्म छोड़ कर सिख धर्म अपना लिया। वो कहते हैं, “मैं इस इलाके को छोड़कर नहीं जाना चाहता हूं और यहां बगावत की एक मिसाल के तौर पर रहना चाहता हूं।”जगजीत यहां तक दावा करते हैं कि पांच साल पहले ब्राह्मण हिंदुओं ने उन पर क़ातिलाना हमला भी किया था। वो कहते हैं कि धर्म परिवर्तन करने से उन्हें मन की शांति मिली है। अब उनका बेटा दलित नहीं सरदार का बेटा कहलाया जायेगा| । ‘पाकिस्तान हिंदू पंचायत’ संगठन के महासचिव रवि दावानी कहते हैं, “दलित समुदाय को हिंदुओं में गिना जाए तो समस्या नहीं होनी चाहिए। पाकिस्तान में हिन्दू अल्पसंख्यक अधिकारों की बात करना ऐसे ही लोगों की बात करने के बराबर है।”लेकिन पाकिस्तान में दलित समुदाय के अधिकारियों के लिए काम करने वाले और राष्ट्रपति पुरस्कार विजेता डॉक्टर सोनू खनगरियानी तस्वीर का दूसरा रुख दिखाते हुए कहते हैं कि हिंदू अल्पसंख्यकों को मिलने वाले अधिकार तो ब्राह्मण ले जाते हैं।वो कहते हैं, “इसमें कोई दो राय नहीं कि हमें इस देश में मुसलमानों से कोई खतरा नहीं, बल्कि खतरा ब्राह्मणों से है| यह छुआछूत अकेले पाकिस्तान की बीमारी नहीं है बल्कि इससे भी बुरा हाल हिंदुस्तान का है| वीर सावरकर की प्रसिद्ध पुस्तक “मोपला” में जो मालाबार में हुए दंगो का सच दिखाती है कि किस तरह केरल के अन्दर ब्राह्मणवाद के कारण ही इतना बड़ा अत्याचार हुआ ब्राह्मण-वाद की बतौलतहमेशा से ही मूलवासी दलितों का शोषण होते आया है। और जब मूलवासी आदिवासीइससे बचे रहे तब ब्राह्मण-वाद ने अपने हित के लिए आदिवासियों को भी अपनेजाल में फँसाया और प्रकृति-पूजकों को जाति व्यवस्था मेंशुद्र का दर्जा देने की कोशिश की। जिस कारण आज पूर्वी भारत में ईसाइयत और इस्लाम का प्रभाव बढ़ा| 11वीं सदी ईस्वी में भारत पर पहला मुस्लिम आक्रमण हुआ यूरोपीय देशो ने भारत पर 17वीं-18वीं शताब्दियों में कब्जा करना शुरू किया किन्तु उससे पहले तो यहाँ जातिवाद और पाखंड के कारण लाखों लोग बोद्ध और जैन मत स्वीकार कर चुके थे इससे यह स्पष्ट है कि जाति प्रथा और धर्मपरिवर्तन के लिए विदेशी हमलावरों को दोषी ठहराने से पहले हमे खुद के सामाजिक भेदभाव का अवलोकन भी कर लेना चाहिए|
बहरहाल आज सवाल यह नहीं है कि समाज जीवित है या मर गया? सवाल यह है किस स्तर पर जीवित है| हम अक्सर कहीं भी होते धर्म परिवर्तन पर सीधे तौर पर दुसरे सम्प्रदायों,मतो पर आरोप लगाते है किन्तु उस व्यवस्था पर कभी प्रश्नचिन्ह खड़े नहीं करते जिसके कारण यह सब होता है, हमारे देश के नेता हमेशा जाति सुधार की बात करते किन्तु उस नजरिये के सुधार की बात नहीं करते जिसके कारण यह सब समस्याएं खड़ी होती है जिसके कारण मनुष्य जातिगत शब्दों से हीन समझा जाता है बहुत सी जगह आज भी दलितों को मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं है आस्था प्रार्थना तक में जातिगत शब्दों से तिरस्कार होता है किन्तु जब वो बहिस्कृत लोग धर्मपरिवर्तन कर लेते है तब धर्म के लोप का रोना रोया जाता है| सोचो आखिर जातिवाद क्या है इससे हमने अभी तक क्या पाया?