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अंधविश्वास को कब मिलेगा मोक्ष

दिल्ली के बुराड़ी में एक ही परिवार के सभी 11 सदस्यों की मौत पर से धीरे-धीरे अभी जितना पर्दा उठ रहा है उतने ही सवाल खड़े हो रहे हैं। कहा जा रहा है इस परिवार की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी और ये हत्या के बजाय आत्महत्या का मामला है। घर के लोग धार्मिक प्रवृत्ति के थे। जिस तरीके से उन्होंने खुदकुशी की है। उस पर धार्मिक रीतियों के बारे में लिखा है। मोक्ष के बारे में लिखा है कि आंखें बंद करेंगे, हांथ बांध लेंगे तो मोक्ष की प्राप्ति होगी। ये वह बाते हैं जो इशारा कर रही हैं कि परिवार ने अंधविश्वास में फंसकर ये खौफनाक कदम उठाया।

दरअसल मोक्ष कोई वस्तु नहीं है, जिसे पाया जा सके। वह पाने का कोई विषय नहीं है। जब मन में कोई इच्छा न हो और तो और मोक्ष की भी नहीं, तब जो होता है, उसका नाम मोक्ष है। मोक्ष है कुंठाओं का त्याग है वैदिक धर्म में मोक्ष को योग से समाधि की ओर कहा गया है। यानि के मोक्ष एक ऐसी दशा है जिसे मनोदशा नहीं कह सकते।

लोगों को यह समझाने के बजाय उल्टा इस मामले में मीडिया के सभी प्लेटफार्मो से इस बात को बार-बार दोहराया जा रहा है कि मृतक परिवार धार्मिक था। इसी कारण उसने मौत को गले लगाया। जबकि सही मायने में देखें तो ये कथित बौद्धिक लोगों की अज्ञानता है, क्योंकि कहीं से भी यह मामला धर्मिकता से जुड़ा नहीं है ये पागलपन, अंधविश्वास और पाखंड से जुड़ा मामला है। जहाँ मीडिया को इस परिवार के पाखंडता से जुड़े होने के सवाल उजागर करने थे। वहां इसमें धर्मिकता पर निशाना साधा जा रहा है ताकि धार्मिकता की हत्या कर, पाखंड को और अधिक बल दिया जा सके। भला समाज में परिवार धार्मिक नहीं तो क्या राक्षसी प्रवृत्ति के होने चाहिए?

कहा जा रहा है बुराड़ी में मृतकों के परिवार से पुलिस को जो रजिस्टर मिले हैं, उनमें अलौकिक शक्तियों, मोक्ष के लिए मौत ही एक द्वार व आत्मा का अध्यात्म से रिश्ता जैसी अजीबोगरीब बातें लिखी बताई जा रही हैं।

असल में आज हर किसी को सुखसमृद्धि चाहिए और अंधविश्वास बेहद सरल साधनों से सुखसमृद्धि की पूरी गारंटी देता है। यह सब पाने के लिए धर्मगुरु, कथावाचक, पंडे-पुरोहित भी खुशहाल जीवन के टोटके बताते हैं। इसके अलावा धर्म के नाम पर हर मुराद पूरी करने के नुस्खे बताने वाली, कथा-किस्सों से भरपूर मसाले वाली पाखंड की पुस्तकों से भी बाजार भरे पड़े हैं। जो सुख-सौभाग्य, संपत्ति, मोक्ष, सुरक्षा आदि प्रदान करने की पूरी गारंटी देती हैं। शायद इसी गारंटी से प्रेरित हो कर इस परिवार ने मोक्ष की कल्पना की हो?

क्योंकि इन पुस्तकों के अध्यायों में देवताओं द्वारा अनूठे कारनामे, कहीं देवी द्वारा असुरों का संहार या देवियों की अर्चना की गई है। जब देवी एक मनुष्य की तरह ही लड़ती है तो झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने भी तो शत्रुओं से युद्ध किया था और जिसका प्रमाण भी पाया जाता है लेकिन लक्ष्मीबाई के नाम का कोई व्रत, कोई पूजा नहीं बनी। इसी तरह देश व धर्म के लिए अनेकों क्रांतिकारियों ने बलिदान दिया उनके नाम पर कोई व्रत नहीं है क्यों?  क्योंकि ये लोग काल्पनिक देवी-देवता की भीड़ खड़ी किये हुए है इसलिए इन्हें असली जीती जागती देवियों से भय है। उनका तो रेप कर रहे हैं। हाल में पकड़े गये शनिधाम वाले बाबा दाती महाराज पीड़िता के जिस्म के हर हिस्से को नोंचता था। वह उसे चंरण सेवा कहा करता था। पीड़िता मीडिया के सामने बता रही थी कि बाबा कहता था! तुम्हें मोक्ष प्राप्त होगा, यह भी सेवा ही है, तुम बाबा की हो और बाबा तुम्हारे, इससे क्या यही समझे कि अब ये लोग रेप से भी मोक्ष की गारंटी दे रहे हैं?

आज अनेकों कथित बाबाओं, पंडितों ने लोगों के मन में भय पैदा कर रखा है। इसके चलते ही ऐसे अंधविश्वासों का बाजार फलता-फूलता है और पाखंड की पुस्तकें बिकती हैं। नहीं तो,  इन्हें पूछने वाला है ही कौन?  इसमें सभी धर्मो, मतां और पन्थां के कथित धर्म गुरु शामिल हैं। यह सब अपने आपको ईश्वर के दूत समझते हैं। अंधविश्वास पाखंड फैलाने से इन धर्म गुरुओं की रोजी-रोटी चलती रहती है। जब आम व्यक्ति थोड़ा भी परेशान होता है वह इन गुरुजी की शरण में चला जाता है। बस यही से इनकी बल्ले-बल्ले हो जाती है और देखिये इनके पास दुःखी और परेशान लोग ही जाते हैं जिनसे यह लोग अपने स्वार्थ सि( के लिए उपाय के नाम पर धन अर्जित करते रहते हैं। भला ये क्यों किसी की सुखसमृद्धि की कामना करेंगे? ये तो चाहते हैं लोग परेशान रहें, दुखी रहें, पीड़ित रहे हाँ अगर भूल से भी कोई सुखी मनुष्य इनके करीब चला भी जाये तो ये लोग उसके भविष्य में अमंगल होने की झूठी कहानी गढ़कर उसे भी दुखी कर देते हैं।

आम लोगों को डराने के लिए इनके पास कुछ प्रसिद्ध वाक्य होते है ‘‘आप पर शनि की छाया है, चुडेलों की नजर है, भूतों ने आपको जकड रखा है। योगनियों और शमशान के प्रेत आपके काम में प्रगति नहीं करने दे रहे, देवताओं का प्रकोप है। देवियों का गुस्सा है और लोग इन धर्म के ठेकेदारों की मूर्खतापूर्ण बातों में आकर पाखंड में फंसकर पूजा-पाठ करवा कर अपनी पूरी जिंदगी तबाह कर देते हैं। शनि के लिए शनि दान, मंगल के लिए मगल दान, काली के लिए बलि, शमशान के प्रेतों के लिए मुर्गा और न जाने क्या क्या। हर रोज भारत में लाखों मासूम जानवर इन्ही धर्म के ठेकदारों के पेट की भूख शांत करने के लिए भगवानों के नाम पर काटे जाते हैं।

शायद इसी छल से इन्होने धर्म के नाम अपने साम्राज्य खड़े कर लिए हैं। लोगों की भूख, रोजगार, दुःख दर्द की चिंता, किसी के स्वास्थ और किसी नागरिक की शिक्षा की फिक्र इन्हें कतई नहीं है। बस इनका साम्राज्य बड़ा हो देश में चिन्तनशील, विवेकी और धर्म की सच्ची व्याख्या करने वाले लोग समाप्त हों, बस हर समय ये लोग यही कामना करते हैं ताकि इनके बहकावे में लोग आते रहें और बुराड़ी की तरह के हादसे होते रहें। आज जबकि लोगों को इन अंधविश्वासों से बहार आने की आवश्यकता है जब तक हम धर्म के नाम पर भयभीत रहेंगे तब तक धर्म के ठेकेदार लोगों को लुटते रहेंगे। यह एक अंधविश्वास का कुआं ही तो हुआ जिस में गिराने के लिए सीधे भोले लोगों को ही निशाना बनायाजा रहा है। खुद भूखे-प्यासे रह कर देवी-देवताओं को प्रसन्न करने से क्या होगा? आहार त्याग कर, अपने परिवार की बलि दे कर भला मोक्ष मिलेगा क्या? इतनी बात तो स्वयं समझने की थी पर दुःखद काल है कि यह इतनी सी बात भी आज लोगों को समझानी पड़ रही है।……लेख-राजीव चौधरी

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