Tekken 3: Embark on the Free PC Combat Adventure

Tekken 3 entices with a complimentary PC gaming journey. Delve into legendary clashes, navigate varied modes, and experience the tale that sculpted fighting game lore!

Tekken 3

Categories

Posts

क्या दलित आदिवासी पिछड़े हिन्दू नहीं है?

जब से सोशल मीडिया आया है तब से एक नया युद्ध शुरू हो गया है इसे वैचारिक युद्ध कहा जा रहा है, इसमें फेक न्यूज है, प्रोपगेंडा न्यूज है और ऐसे फर्जी समाचार है जो एक आम इन्सान के दिमाग को पंगु बना डालते है। इन प्रोपगेंडा न्यूज से वही जीत सकता है जिसके पास असली तथ्य है और जो खुद सोचने की हिम्मत रखता है।

अभी पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया के अनेकों प्लेटफार्म पर आपको एक न्यूज घुमती दिखाई दे रही है जिसमें कहा जा रहा है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 330 -342 से प्रमाणित है कि अनु.जाति. जनजाति एवं पिछड़े वर्ग के लोग हिन्दू नही हैं। और इसमें दावा किया जा रहा है कि यदि किसी में दम है तो प्रमाणित करके बताये कि अनु.जाति, जनजाति एवं पिछड़े वर्ग के लोग हिन्दू हैं। अब यहाँ बात सामने आती है पहली तो यह कि हम बाबा साहब आंबेडकर जी बात माने या इनके नाम पर फर्जी प्रोपगेंडा न्यूज चलाने वाले तथाकथित उनके चेलों की?

दरअसल आज वामपंथ की विचारधारा दुनिया से मिटने के कगार पर है तो ये लोग जाते जाते इस देश में विभाजन के बीज बोने का काम कर रहे है। बाबा साहेब के नाम पर मूलनिवासी वाद चलाया जा रहा है, कभी पेरियार की वामपंथी विचारधारा को आंबेडकर जी नाम पर थोपते है। तो कभी मुगलों को भारतीय बताते है और आर्यों को बाहरी विदेशी बताने लगते है।

इसी अनुच्छेद 330, 340 और 342 जिसमें यह लोग हिन्दू समाज को आपस में बाँट रहे है। इनके इस प्रोपगेंडा न्यूज को जानने के लिए अगर सबसे पहले अनुच्छेद 330 को देखें तो भारतीय संविधान का अनुच्छेद 330 का धर्म से कोई लेना देना नहीं है। ये अनुच्छेद धर्म के संबंध में नहीं है. अनुच्छेद 330 में धर्म या हिन्दू शब्द मिलेगा ही नहीं. अनुच्छेद 330 भारत के संसद में दलित पिछड़ों को आरक्षण देता और यह अनुच्छेद अनु.जाति, जनजाति के लिए भारतीय संसद में सीटो को आरक्षित करता है।

इसी तरह अनुच्छेद 340 को देखें इसका भी धर्म से कोई लेना देना नहीं। अनुच्छेद 340 में भी कही आपको धर्म या हिन्दू शब्द नहीं मिलेगा। अनुच्छेद 340 पिछड़ा वर्ग के लिए कमीशन बनाने के लिए है पिछड़ा वर्ग कि लिस्ट में कौन शामिल होगे? क्या इसके मापदंड होगे? और क्या सिफारिशें कि जाए।

बल्कि इस संबंध में कमीशन को अपनी रिपोर्ट तैयार करने को कहा गया है. इसी अनुच्छेद के तहत कई कमीशन बने। जिनमें से एक मंडल कमीशन भी बना और उसी मंडल कमीशन ने पिछड़ा वर्ग की लिस्ट में कौन शामिल होगा उसके लिए मापदंड बनाए एव पिछड़ा वर्ग के लिए सिफारिशें की गयी।

अब अगर आर्टिकल 342 को देखें तो अनुच्छेद 342 एस टी जातियों की लिस्ट तैयार करने के संबंध में है। इस अनुच्छेद के अनुसार राष्ट्रपति, राज्य एवं केन्द्र शासित राज्यों के राज्यपाल के माध्यम से एस टी कोटे की लिस्ट जारी कर सकेगे। भारतीय संसद भी कानून बनाकर एसटी की लिस्ट से किसी भी जाति को शामिल या बाहर कर सकते हैं। इसमें भी धर्म या हिन्दू धर्म के संबंध नहीं है. इस पूरे अनुच्छेद में कहीं भी हिन्दू या धर्म शब्द नहीं लिखा है।

इस तरह ये भी सफेद झूठ है कि अनुच्छेद 330,340 एवं 342 के अनु.जाति, जनजाति एवं पिछड़े वर्ग के लोग हिन्दू नही हैं।  कोई भी अनुच्छेद 330 ,340 एवं 342 पढ सकता है और सच जान सकता है।

अब आते हैं कि संविधान के किस अनुच्छेद में लिखा है कि हिन्दू कौन है? संविधान में साफ उल्लेख है कि हिन्दू कौन है।  संविधान के अनुच्छेद 25 (2) बी के तहत जैन, सिख, बौद्ध हिन्दू हैं, इसके अतिरिक्त हिन्दू मैरिज एक्ट सेक्शन 2 में भी बताया गया है कि हिन्दू कौन हैं।

हिन्दू मैरिज एक्ट सेक्शन 2 के अनुसार वीरशैव, लिंगायत, आर्य समाज, प्रार्थना समाज, ब्रम्हा समाज हिन्दू है।  दुसरे खंड में जैन, सिख, बौद्ध हिन्दू है।  और मुस्लिम, ईसाई, पारसी, यहूदी को छोड़कर शेष सभी भारत में रहने वाले नागरिक हिन्दू है।

इस तरह ये दावा गलत और झूठा है और एक सुनियोजित प्रोपोगेंडा है जिसका वास्तविकता से कोई लेना देना नही, जबकि एक बात और कि  भारतीय संविधान में हिन्दू शब्द और उसके अर्थ दोनो मिलते है मगर यह मूलनिवासी शब्द पूरे संविधान में कही नही है।  जिसे लेकर आज अलगाव की राजनीती की जा रही है। 

पहली बात तो भारत में मूलनिवासी कौन है।  भारत में सारे भारतीय यहां के मूलनिवासी हैं।  न तो कोई न पहले आया, न बाद में।  मूलनिवासी के बारे में विश्व में जो संकल्पना है, वैसा यहां कोई मूलनिवासी समाज नहीं है।  मुस्लिम समाज का बड़ा हिस्सा जो खुद को अरबी तुर्की समझ रहा है अगर कुछ वर्ष पीछे जाये तो उनके पूर्वज भी हिन्दू ही मिलेंगे। 

भारत के संविधान ने जिस समाज को अनुसूचित जनजाति के रूप में घोषित किया उसके विकास हेतु कई प्रकार के प्रयास चल रहे हैं।  संविधान में जनजाति समाज के लिये कई अधिकारों का प्रावधान है. इस लिए मूल निवासियों के अधिकारों की लड़ाई और भारत में जनजाति अधिकारों की बात में बहुत अंतर है।

हाँ एक बात है कि स्वतंत्रता के बाद जनजाति समाज के विकास हेतु जिन योजनाओं की सरकार ने आज तक घोषणा की है उसका लाभ वास्तव में जनजाति समाज को उतना नहीं मिला उतना नहीं मिला कुछ सरकारी अधिकारियों के रवैये के कारण समाज के अंतिम पंक्ति में खडे व्यक्ति तक लाभ नहीं पहुंचा। 

इसके लिये जनजाति समाज को अपनी बात करना उचित एवं न्यायपूर्ण कह सकते हैं।  परन्तु उनके अधिकारों के नाम पर आज जिस तरह अनेकों राजनितिक संगठन बनाकर या कठुत सामाजिक संगठन बनाकर विद्वेष आपसी फूट के बीज आज रोप जा रहे है, जिस प्रकार की भाषा का इस्तेमाल किया जा रहा है..यह सब तो बाबा साहब के बनाये संविधान के ही खिलाफ है। 

मूलनिवासियों के नाम पर उनके अधिकारों के नाम पर भारतीय धराधाम से जुड़े महापुरुषों की अस्मिता पर हमला किया जा रहा है, लाखों वर्षों से इस देश में चले आ रहे उत्सवों पर सवाल उठाये जा रहे है. इस देश के धार्मिक ग्रंथो पर सवाल उठाये जा रहे है।

आखिर ऐसा करके कौनसे अधिकार हासिल करना चाहते है..? हम दावे के साथ कह सकते है इस प्रकार की कलुषित मानसिकता भारत के किसी इन्सान की नहीं हो सकती ये मानसिकता विदेशी है. यह शुद्ध रूप से विदेशी चंदे से चल रही और विदेशी मानसिकता है। 

विनय आर्य

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *