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क्यों उग्र है एशिया के बौद्ध भिक्षु

भारत में भले ही देश के कई शहरों में गर्मी के कारण पारा 45 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया हो लेकिन इन दिनों भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका में राजनितिक कहो या धार्मिक पारा अपने पूरे उफान पर है। म्यांमार की आग अभी ठंडी भी नहीं हुई कि श्रीलंका में इन दिनों जो चल रहा है वो भारत में जय भीम जय मीम का नारा लगाने वालों को सोचने पर विवश जरुर कर देगा। खबर है कि श्रीलंका में सभी नौ मुस्लिम मंत्रियों ने सरकार से इस्तीफा दे दिया है। इसके अलावा दो प्रांतीय गवर्नरों ने भी इस्तीफा सौंप दिया है। इन इस्तीफों से साफ हो गया है कि बौद्ध बहुल श्रीलंका में ईस्टर के दिन चर्च पर हुए हमले के बाद से सब कुछ ठीक नहीं है। इस हमले में 250 से अधिक लोग मारे गए थे।

ये इस्तीफे श्रीलंका के प्रभावी बौद्ध संन्यासी अथुरालिये रतना की भूख हड़ताल को देखते हुए दिए गये है इस प्रभावी बौद्ध संन्यासी ने, कई दिन पहले कहा था कि उनका यह आमरण अनशन है और जब तक मुस्लिम मंत्री इस्तीफा नहीं दे देते हैं तब तक यह जारी रहेगा। यही नहीं इस भूख हड़ताल पर बैठे बौद्ध भिक्षु के समर्थन में एक और बौद्ध भिक्षु गलागोडा अथे ज्ञानसारा आए थे, ज्ञानसारा बूद्धिस्ट पावर फोर्स मुहिम भी चलाते हैं। ज्ञानसारा ने सरकार को एक अल्टिमेटम देते हुए कहा था कि अगर सभी मुस्लिम मंत्रियों को उनके पद से नहीं हटाया गया तो पूरे श्रीलंका में तमाशा होगा।

आखिर शांति का सन्देश देने वाले ये वाले बौद्ध सन्यासी इतने उग्र क्यों हो रहे है? पहले म्यांमार में आसिन वेराथू फिर थाइलैंड, इसके बाद अब श्रीलंका में अथुरालिये रतना और ज्ञानसारा इन तीनों देशों में बौद्ध भिक्षुओं और मुसलमानों के बीच आखिर टकराव क्या है। कहीं ये इतिहास कोई जख्म तो नहीं जो रह-रहकर बुद्ध के इन अनुयाईयों को दर्द दे रहा हो?

असल में केवल श्रीलंका ही नहीं, दुनिया के कई देशों में बौद्ध और इस्लाम के बीच पिछले कुछ सालों में संघर्ष लगातार बढ़ा है। श्रीलंका में 2012 के बाद से बौद्ध आबादी, मुसलमानों को अपनी संस्कृति पर खतरा मानती है। मुसलमानों पर यहां बौद्धों के जबरन धर्म परिवर्तन के आरोप भी लगते रहे है। और बौद्धों के अंदर इतिहास का दिया हुआ एक डर भी है कि उनके अपने देश में उनकी संस्कृति नष्ट हो जाएगी और उनका देश मुस्लिम बहुल देश बन जाएगा। मध्य एशिया, शिनजियांग, अफगानिस्तान और पाकिस्तान 7वीं-11वीं शताब्दी में इस्लाम के आने से पहले बौद्ध बहुल आबादी वाले देश रहे थे। इस्लाम ने इन देशों में जो घमासान मचाया था वह इतिहास की छाती पर गहरे जख्म के सामान है।

सन 1006 में तुर्की के मुस्लिम आक्रान्ता काराखनीद्स ने शिनजियांग के खोतान शहर पर कब्जा किया तो उनके एक मुस्लिम कवि ने एक कविता रची थी जो कुछ इस तरह थी कि हम एक बाढ़ की तरह आए और उनके शहर बहा ले गए, हमने बुद्ध की मूर्तियां-मंदिर तोड़ दिए और महात्मा बुद्ध का अपमान किया। शायद यह अपमान दोबारा न हो इसी डर का नतीजा म्यामांर, थाइलैंड और श्रीलंका में बौद्ध उग्र है।

कुछ समय पहले न्यूयॉर्क टाइम्स में एक बौद्ध भिक्षु ने रोहिंग्या मुसलमानों पर अपनी राय देते हुए कहा था, उन्होंने हमारी जमीन छीन ली, हमारा खाना छीन लिया, हमारा पानी छीन लिया। हम उन्हें कभी वापस स्वीकार नहीं करेंगे. क्योंकि उनके धार्मिक स्कूलों में दूसरों पर हिंसा और हमले करना ही सिखाया जाता है। हमारा साथ-साथ रहना बिल्कुल असंभव है। इसी दौरान बर्मा के एक स्थानीय अधिकारी ने तो यहां तक कह डाला था कि वे कई पत्नियों और बच्चों के साथ पागलों की तरह सिर्फ आबादी बढ़ाते जाते हैं।

लद्दाख में भी पिछले दिनों एक मुस्लिम लड़के और बौद्ध लड़की की शादी के बाद बौद्ध और मुस्लिमों के बीच संघर्ष देखने को मिला था। लद्दाख के स्थानीय मठ के प्रमुख लामा ने कहा था- मुस्लिम हमारा सफाया करने की कोशिश कर रहे हैं।

एक सदी पहले बौद्ध धर्म निर्विवाद रूप से दुनिया का एक बड़ा पंथ रहा था। इस्लाम का आक्रमण हुआ जिसके बाद बुद्ध के अनुयायियों को भारी नुकसान झेलना पड़ा। सन 1193 में बौद्ध धर्म का केंद्र रहे नालंदा विश्वविद्यालय पर मुस्लिमों आक्रमण कर छिन्न भिन्न कर दिया। इसके बाद पूरे दक्षिण एशिया में मुस्लिम शासन स्थापित होने के बाद बौद्ध बहुल इलाकों जैसे अफगानिस्तान, स्वात, सिंध, पश्चिमी पंजाब, पूर्वी बंगाल कश्मीर में सबसे ज्यादा तेजी से बौद्ध धर्म को मानने वालो को शिकार बनाया गया। मामला इतिहास तक सिमित नहीं है 2 मार्च 2001 को अफगानिस्तान के बमियान में भगवान बुद्ध की दो विशाल मूर्तियों को मुल्ला उमर की तालिबानी सरकार ने बारूद लगाकर उड़ा दिया। इसके बाद मुल्ला उमर ने कहा कि “मुसलमानों को इन मूर्तियों के नष्ट होने पर गर्व करना चाहिए, इन्हें तोड़कर हमने अल्लाह की इबादत की है।

यही कारण है कि बौद्ध और इस्लाम धर्म के मूल सिद्धातों को अलग रखकर इतिहास बौद्धों के इस्लाम के प्रति नजरिए को बयां करता है। इस्लाम के इतिहास ने बौद्धों के मन में एक ऐसा डर पैदा कर दिया है जिसे जल्दी निकाला जाना संभव नहीं है।  आज भी बौद्ध बहुल और मुस्लिम अल्पसंख्यकों वाले देशों में शिक्षा, विकास, परिवार नियोजन पर जागरुकता फैलाने जैसे विचार भी इस्लाम मानने से इंकार कर देता है। इसके अलावा भी इस्लाम से जुड़े लोग अपनी मानसकिता दिखाने से नहीं गुरेज करते, इन देशों में बौद्ध लड़कियों को भी शिकार बनाया गया। दुनिया भर में मुसलमानों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि वो कई देशों में अल्पसंख्यक होने के बावजूद भी वहाँ के संविधान से तालमेल नहीं बैठाना चाहते। वो किसी देश के संविधान के बजाए इस्लामी कानून पर अधिक विश्वास करते हैं। हो सकता है ऐसे कारणों से ही म्यांमार में 969 ग्रुप का संचालन आसिन बेराथु जैसे बौद्ध भिक्षु करने को खड़े हो जाते हो और श्रीलंका में अथुरालिये रतना और ज्ञानसारा जन्म ले लेते हो।

राजीव चौधरी 

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