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भारत नेपाल सीमा पर कहाँ से उग रहे है मदरसे

Rajeev Choudhary

किसी घटना की व्याख्या करने वाला कोई सुझाव या अलग-अलग प्रतीत होने वाली बहुत सी घटनाओं के आपसी सम्बन्ध की व्याख्या करने वाला कोई तर्कपूर्ण सुझाव को परिकल्पना कहते है। हम सब मिलकर देश हित के बहुत सारे मुद्दे उठाते है ठोस परिकल्पना करते है। उन्हें जोड़ते है, सुझाव देते और सुझाव लेते है ताकि भारत का भविष्य उज्जवल रहे।

एक दशक तक नेपाल माओवाद से ग्रसित रहा और सड़कें रक्तरंजित रही। नेत्र बिक्रम चंद और माओवादी नेता पुष्प कमल दहल प्रचंड एक समय एक दुसरें के सहयोगी हुआ करते थे। इन्हीं दोनों ने साल 1996 में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल माओवादी बनाई थी। इस पार्टी ने करीब 10 साल तक सरकार के खिलाफ सशस्त्र लड़ाई लड़ी। साल 2006 में पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ने शांति प्रक्रिया में शामिल होने और राजनीति में आने का फैसला किया. सत्ता मिलते ही नेपाल में हथियार डाल दिए। और नेपाल को हिन्दू राष्ट्र से भारत वाली धर्मनिरपेक्षता में झोक दिया। ऐसा क्यों हुआ और नेपाल में इन लोगों को हथियार और पैसा कहाँ से मिल रहा था क्योंकि नेपाल एक लेंडलॉक देश है।

इस सवाल का जवाब मिलता है साल 2002 में जी न्यूज की एक खबर में दिया गया था कि भारत नेपाल सीमा पर बड़ी संख्या में खुल रहे मदरसे कहीं नेपाल की आग का कारण तो नहीं? परिकल्पना महज एक सवाल के साथ उड़ेली गयी थी। जबकि उसी दौरान नेपाल सरकार ने खुलकर माओवाद का कारण भारत की सीमा पर बन रहे मदरसे बताया था कि भारत की सीमा से सटे मदरसों से माओवादियों को हथियार और फंडिंग की जा रही है।

इससे कुछ समय पहले जनवरी 1997 में नेपाल के त्रिभुवन एयरपोर्ट से पाक की खुफिया एजेंसी आईएसआई एजेंट मिर्जा दिलशाद बेग 20 किलो आरडीएक्स के साथ पकड़ा गया था। जो नेपाल में पाकिस्तान के दूतावास का कर्मचारी बताया जाता रहा। थोडा और अखबारों का सहारा ले तो 3 जुलाई साल 2000 में एक पत्रकार ने इंडिया टुडे में एक स्टोरी दी थी जिसे 12 साल बाद यानि 2012 में अपडेट किया गया। इसका शीर्षक था इंडो नेपाल बॉर्डर बी कम्स न्यू हॉटबेड ऑफ क्रिमनल एंड आई एस आई रिलेटेड एक्टिविटीज यानि भारत नेपाल सीमा आई एस आई गतिविधि केंद्र बन गया। लेकिन सरकार की पता नहीं क्या मजबूरी थी और इस खबर पर कान दबाये बैठी रही। हाल ये हुआ कि 2006 तक उत्तर प्रदेश बिहार से लगती भारत नेपाल सीमा पर सुरक्षा चैकियां से अधिक मदरसे बन गये नतीजा माओवादियों की जीत पक्की हो गयी और नेपाल सरकार ने घुटने टेक दिए।

इसी दौरान यानि ठीक साल 2006 में सशस्त्र सीमा बल के महानिदेशक सीमा तिलक काक ने एक प्रेस कांफ्रेंस की उन्होंने कहा कि भारत-नेपाल सीमा के दोनों किनारों पर हाल के दिनों में मदरसों की तेजी से वृद्धि हुई है। लगभग 1900 मदरसे बनाये जा चुके है, जिनमें लगभग 1100 भारत में हैं और बाकी नेपाल में हैं और सुरक्षा एजेंसियां 50 या 60  संवेदनशील लोगों पर कड़ी नजर रखे हुए है।

हालात जस के तस चलते रहते है, सरकार खतरे से आँख बंदकर सो गयी कहो या वोट बैंक के लालच में मौन हो गयी हो! सुरक्षा एजेंसियां अपने स्तर पर काम तो करती रही सरकार को चेताती भी रही लेकिन सोते को जगाया जा सकता है जानबूझकर सोने वाले को नहीं। इसी कशमकश में दिन महीने और साल बीत जाते है।

लेकिन पिछले दिनों दिल्ली में सुरक्षा एजेंसियों के हाथ मुस्तकीम उर्फ अबू यूसुफ नाम का आतंकी लगा था, जिसने पूछताछ में बहुत ही अहम जानकारियां दी। मुस्तकीम की निशानदेही पर उत्तर प्रदेश के बलरामपुर में उसके घर से विस्फोटक पदार्थ, फिदायीन जैकेट्स भी मिली थी। इस दौरान आतंकी ने बताया था कि वह 2017 में नेपाल बॉर्डर में सप्तपुरी तब्लीगी जमात के जलसे में शामिल हुआ था। इस जानकारी के बाद उत्तर प्रदेश के महाराज गंज, बहराइच, बलरामपुर, श्रावस्ती और सिद्धार्थ नगर के जिलों के साथकृसाथ बिहार के रोहताश, परसा, कपिलवस्तु, सुनसारी बारा जिलों में सक्रिय मदरसों की जाँच पड़ताल शुरू की गई है। अकेले सिद्धार्थ नगर जिले में पिछले एक साल में 47 नए मदरसे खुले हैं, जबकि जिले में 452 मदरसे पहले से थे। सूचना के बाद योगी सरकार ने जांच के आदेश दिए और उत्तर प्रदेश की सीमा से सटे 257 मस्जिद-मदरसों में टेरर फंडिंग के शक में जाँच को आगे बढाया। पिछले महीने यानि खबर आई कि कराची की प्रेस में छापे 2000 और 500 के जाली नोटों को दाऊद के गुर्गों के जरिए आईएसआई नेपाल के रास्ते भारत भेज रही है।

हालाँकि ये नई चीज नहीं थी क्योंकि 28 अगस्त 2009 को काठमांडू के त्रिभुवन अन्तरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर दोहा से आये पाकिस्तानी नागरिक अब्दुल गफ्फार की गिरफ्तारी भी जाली भारतीय रुपये के कारोबार की ही एक कड़ी थी। हलात खराब थे दोनों देशों की खुली सीमा और बड़ी संख्या में मदरसे होने कारण कोई रास्ता नहीं दिख रहा था। लेकिन पिछले साल दिल्ली में पीलीभीत के कारोबारियों से 1.20 लाख के जाली नोट पकड़े जाने के बाद एनआईए, एटीएस समेत देश की सभी सुरक्षा एजेंसियों ने इसकी जांच पड़ताल शुरू कर दी। नोटबंदी के बाद 2000 और 500 के जाली नोटों की सबसे पहले बड़ी खेप नवंबर 2019 में नेपाल के काठमांडू में पकड़ी गई। एक पूर्व मंत्री के बेटे और पाकिस्तानी एजेंट के पास सुरक्षा एजेंसियों ने करीब पाने आठ करोड़ के जाली नोट पकड़े। इसके अलावा बॉर्डर से ही एक अन्य आतंकी अब्दुल गफ्फार के पास से 26 लाख 96 हजार जाली भारतीय रुपया बरामद हुआ लेकिन अगस्त 2020 में आतंकी अबू युसूफ उर्फ मुस्तकीम की गिरफ्तारी और सीमा के मदरसों में उसकी सक्रियता के बाद भारत-नेपाल सीमा पर स्थित ढाई सौ मदरसे खुफिया एजेंसियों के रडार पर आ गए।

अब मामले को आगे लेकर बढे तो अब साफ हो चूका था कि भारत नेपाल की खुली अंतरराष्ट्रीय सीमा पर भारतीय जिलों में एकाएक मदरसों का खुलना, मस्जिदों मुसाफिरखानों का बनना, निश्चित ही किसी नई साजिश की ओर इशारा है। हाल ही में सुरक्षा एजेंसियों को आतंकियों के पास से कुछ महत्वपूर्ण सुराग हाथ लगे कि सऊदी अरब, तुर्की और कतर जैसे देशों से पैसा भेजा जा रहा है। सीमा से सटे गांव शहरों के मुसाफिर खानों और मस्जिदों के लिए भी दावत ए इस्लामिया नामक संगठन के जरिये फंडिंग हो रही है। इन इलाकों में तालीम नाम का एक एनजीओ सक्रिय है, जो मदरसों के लिए आर्थिक गतिविधियों का संचालन करने में लगा है। बहरहाल, भारत की सुरक्षा एजेंसियों ने भारत नेपाल सीमा पर अपने गुप्तचर तंत्र और सुरक्षाबलों को और चैकन्ना किया है। इस मसले पर उत्तर प्रदेश स्थित बस्ती के आईजी अनिल कुमार राय कहते हैं कि केंद्र से मिले इनपुट के बाद से जांच पड़ताल की जा रही है, साथ ही नेपाल से भी जानकारी साझा की गई है।  इसका सबसे बड़ा सबूत ये है कि सीमा से सटे इन इलाकों में जहाँ आमतौर पर गरीबी है लेकिन इसके बावजूद भी सरकार की ओर से आर्थिक अनुदान न मिलने और छात्रों की संख्या भी बहुत कम होने के कारण भी आखिर इन मदरसों के आलीशान भवन बन कहाँ से रहे हैं?

असल में ये इस्लाम और वामपंथ का एक राजनितिक गठबंधन है जिससे ये लोग सत्ता पाना चाहते है इसके बाद अपनी विचारधारा लागू करते है इसे आप एक छोटे से उदहारण से जानिए नेपाल में राजनीतिक परिवर्तन होते ही सबसे पहले नेपाल को सेकुलर घोषित किया गया. पशुपतिनाथ मंदिर के प्रधान पुजारी भट्ट को निकालने के लिए अभियान चलाया गया. संस्कृत की पढ़ाई पर नकेल कसी गई। संस्कृत विद्यालयों की परंपरागत मान्यता को समाप्त करने के षड्यंत्र रचे गए. पर, मदरसा और मस्जिद को नियंत्रित करने की कोशिश नहीं की गई। मदरसों को कहां से पैसा मिलता है? कौन इसमें सहयोग कर रहा है? आर्थिक सहयोग करने वाले लोग, मुस्लिम देश व संस्थाओं का असली मकसद क्या है? इनमें विदेशी मौलवियों की ही नियुक्ति क्यों की जाती है? एक भी सवाल और कारवाही इस पर नहीं की गयी।

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