अपश्य गोपामनिपद्यमानमा च परा च पथिभिश्च्रन्तं| स सध्रीची: स विशुचिवसान आ भुवव्नेष्वंत: || ऋग्वेद १०/१७७/3 अर्थ- मैं (गोपाम`) इन्द्रियों के स्वामी (अनिपद्यमानम) अविनश्वर, नित्य (आ च परा च) शारीर…
यदि आर्य समाज स्थापित न होता तो क्या होता ?
इस समय वेद व सृष्टि सम्वत् 1,96,08,53,115 आरम्भ हो रहा है। द्वापर युग की समाप्ति पर लगभग 5,000 वर्ष पूर्व महाभारत का प्रसिद्ध युद्ध हुआ था। इस प्रकार लगभग 1,96,08,48,00…
आर्य समाज और वैदिक धर्म
किसी के पूछने पर जब हम स्वयं को आर्य समाजी कहते हैं तो वह हमें प्रचलित अनेक मतों व धर्मों में से एक विशिष्ट मत या धर्म का व्यक्ति समझता…
ईश्वर भक्ति से मिलती है दुखों से मुक्ति
कोटा, 24 जून। ईश्वर की भक्ति त्रिविध दुखों से मुक्ति दिलाती है। आधि दैविक, आधि भौतिक और आध्यात्मिक तीन प्रकार से मिलने वाले दुखों को दूर करने का एकमात्र उपाय…
ईश्वर के नाम पर भिन्नता और विवाद क्यों?
स्वामी स्वरूपानन्दजी का षिरडी के सांई बाबा को लेकर एक बयान इन दिनों चर्चा में है। उन्होंने षिरडी के सांई बाबा को ईष्वर न मानने और उनका मन्दिर न बनाने…